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संपादकीय लखनी से....
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भप्रय पाठकों,
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प्ार और भिश्ास क साथ, हम आपको "सागर रत्न" क 17 िें सस्करण में हार्दंक स्ागत करत हैं। यह आपका अपना
मंच है, जहां हम न किल भिचारों का आदान-प्रदान करत हैं, बल्कि नई प्रेरणाओ को जषीिन का द्हस्ा बनाने का प्रयास
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िषी करत हैं।
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इस बार क संस्करण में हमन भिभिध भिषयों को शाभमल ककया है, जो समाज, सस्कभत, साद्हत्य और जषीिन क अन्य
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पहलुओ पर आधाररत हैं। यह अंक उन आिाज़ों को िषी समर्पंत है, जो सामान्यता स पर जाकर असाधारण काय्व कर रही
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हैं। आज क युग में, जब हर द्दन नई चुनौभतयाँ और अिसर लकर आता है, हमारा प्रयास है कक हम आपक समक् भिचारों
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का एक ऐसा मंच प्रस्ुत कर जो आपको सोचने और बेहतर काय्व करन क ललए प्रेररत कर।
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भपछल 16 संस्करणों की सफलता आपकी सहिानगता और समथन क भबना सिि नहीं थषी। आपसे प्राप्त प्रोत्ाहन और
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सुझाि हमें नए भिचारों को प्रस्ुत करन में प्रेरणा देत हैं।
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आशा है कक इस अंक क लख, कहाननयाँ, कभिताए और भिचार आपको प्रेररत करगे और आपकी सोच को एक नया
आयाम देंगे।
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हम आपक अमूल्य भिचारों और प्रभतकरियाओ की प्रतषीक्ा में हैं। आइए, इस यात्ा को और िषी समृद्ध बनाए।
शुिकामनाओ क साथ,
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सुबाष ए क े
महाप्रबंधक (मानि संसाधन एिं अध्ययन भिकास)