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उत् स व े शसिशसि े ि ें शव ता ि ेखन
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उत्सव क े शसिशसिे िें कशवता िेखन
प्रशतयोशगता िें प्र्थि पुरस्कार "
प्र शत यो शग ता ि ें प्र ्थि प ुरस् का र "
बचपन की य़ादे ें शसद्ार् अजीष िी क
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सेंट मेेरी ऑफ लूका सीलनयर
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सेकर्री स्कल
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पल्लीप्पुरमे चेरत्तला आलप्पुष़ा
यादें जो बचपन की, बस यादें रि गए
िेरा ख्याि अपने आप को एक ख्याि दे गए ।
जब शकसी शदन घर दादी आती,
बीते जो शदन, अब बस यादों िें िी,
उनक े िा्थ का खाना ्था जान ििारी।
गया िेरा बचपन अब बस बातें रि गए ।
घूिते साईशकि पर चािे शदन िो या रातें।
क ै से िि सब बचपन िें शििा करते ्थे, ििेिा िि ्थे सा्थ, चािे जिां भी जाते।
रंग शबरंगे फि ू िों शक तरि शखिा करते ्थे ।
गीत ििारी दोस्ती का िोरो से गाते,
आज विी फि ू ि िगता जैसे िुरझा गए िै, ििेिा िि क ु छ नया बिाना बनाकर
शदन बचपन क े िायद अब वापस न आए, शवद्ािय न जाते और घर रि जाते।
पर तब िि बर्े िोने का इंतजार करते ्थे । िस्ती इतनी करते की ििारी टीचर भी
िर िाि िि घर को देर से जाते, रिती तंग, उस उम्र िें िि रिते ििंग।
और इसी गिती क े कारण जब कोई भी देखता ििारा ढंग,
ििारी िाता से िार भी खाते । तभी उसे पता चि जाता ििारे बदिािी का रंग।
शफिर जब ििारे किरे िें िि रोते जाते, जाते जब टूर पे स्क ू ि से,
तुरंत अपनी िाता जी से िाड़ भी खाते। तब िगते िि बर्े क ू ि से।
शखिौने देख कर िि सारा बाजार खरीद िेते, करना चािते िि अपने िन की,
पर शपताजी शक ओर देख सारे अरिान सिेट पर र्र जाते श्रिंशसपि क े रूि से।
िेते। शवद्ािय क े अंशति शदन ििें शि्ठाई बाँटी गई,
पर शपताजी तो प्यार कि भी निीं करते ्थे, पर ििारी उम्र उसी क े सा्थ बाँधी गई।
उनक े िी कारण िि रात को चैन से तारे शगना िाना ्था वो शदन वापस पर िा ना िि पाएं
करते ्थे।
यशद जो ख्याि बचपन की, बस यादें रि गए
पाँच क े शचप्स और दस की पेप्सी
सौ की घड़ी और पाँच की पेन िेक्सी । िेरा ख्याि अपने आप को एक ख्याि दे गए
बीते जो शदन, अब बस यादों िें िी,
यि उस वक्त की िान ििारी,
गया िेरा बचपन अब बस बातें रि गए।
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सागर रत्न हिंदी गृि पत्रिका