Page 31 - MAGAZINE
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को                                                                               कवितषा
                         भिपयार््ड
                 ची भ     िपय          ार्  ्ड
               न         भारत का अभभमान


            अरब सागर क े  तट पर बसा,
            कोचीन शिपयार््ड  का अद् ु त शकस्सा।
            जिाँ ििरों से सँवाद िोता िै,
            सपनों का िर आकार साकार िोता िै।

            िोिे और िकर्ी का संगि जिाँ,               तपती धूप और ्‍ठंर्ी बयार,
            नव शनिा्डण की गूँज, िर शदिा विाँ।         सब सिते िैं यिाँ क े  कारीगार।     अशविनी आयष सक्ना
                                                                                                    णु
                                                                                                          े
            जिाँ कारीगरों का िुनर चिकता िै,           ि्थौड़ो की गूँज, शचंगाशरयों का नृत्य,   आयुष सक्ना की सुपत्ी
                                                                                                  े
            िर जिाि िें यिाँ इशतिास झिकता िै।         िर शदन रचता यिां नया क ृ त्य।
            जिाँ उ्‍ठती िैं उम्िीदों की दीवारें,      कोचीन की धरा, कि्डभूशि ििान,
            विाँ िेिनत िैं, गढ़ती निी रािें।           जिाँ जज्बा और सािस बने पिचान।
            जिाँ बनते िैं सागर क े  सपूत,             सिुद्र की ििरों को जो चीरते िैं।
            विाँ िर कोना शदखे िजबूत।                  वो जिाि कोचीन क े  आंगन िें शखिते िैं।

            भारी जिाि युद्धपोत शविाि,                 गौरविािी गा्था, अदम्य प्रयास,
            यिी िोते तैयार, अद् ु त किाि।             कोचीन शिपयार््ड का यि इशतिास।
            िर कीि, िर पटरा करता एक गा्था बयाँ,       भारत की िशक्त, शनिा्डण का िान,
            जिाँ सपनों को शििा िै नया आसिाँ।          कोचीन शिपयार््ड िै, भारत का अशभयान।



                                  आगे बढ़ते रहो




                         जब रास्ता कश्‍ठन और िंबा िगे,
                         और तुि बिादुर या ििबूत ििसूस न करो,
                         यि याद रखो: तुि इतनी दूर आ चुक े  िो,
                         शकसी भी शसतारे की तरि सािस क े  सा्थ।
                         तूफ़ान भड़क सकते िैं, आसिान रो सकता िै,                            वरिस्टी आंटणी
                         पिाशड़याँ खड़ी िो सकती िैं, शफिर भी तुि कोशिि करते िो।             पडरयोजना अचधकारी
                         तुम्िारा उ्‍ठाया िुआ िर कदि, तुम्िारी खींची िुई िर साँस,
                         तुम्िें पििे से ज़यादा करीब िे आती िै।
                         गिशतयाँ िो सकती िैं, ्‍ठोकरें भी िग सकती िैं,
                         िेशकन वे तुम्िें और ििबूत बनाती िैं।
                         िर शगरावट क े  शिए, ताकत िाशसि करना िै,
                         और सूरज की रोिनी ििेिा बाशरि क े  बाद आती िै।

                         तो वापस खड़े िो जाओ, और अपना रास्ता बनाए रखो,
                         कि की िुरुआत उसी से िोती िै जो तुि आज करते िो।
                         अंदर की िौ ििेिा जिती रिेगी—
                         िाग्डदि्डन करने क े  शिए एक रोिनी,

                         बढ़ने क े  शिए एक बीज।





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